जादुई कहनी

                    जादुई  कहानी

हैलो बच्चों , आज हम अपने इस आर्टिकल्स में ले कर आए हैं आपके लिए जादुई कहानी ।
कहानियां सुनना , पढ़ना किससे पसंद नहीं होता है  , हैं ना आपको भी पसंद ? कहानी के ज़रिए हमारा मनोरंजन भी होता है और हमारा बोरिंग टाइम भी काट जाता हैं । कहानी आज के समय में नहीं बल्कि हज़ारों सालों से लोगो की मनोरजंन का एक साधन हैं । कहानी के जरिए हम बच्चों को नैतिक गुण सीखते हैं , जो  चीज हम बच्चो को डांट कर नहीं सीखा सकते कभी कभी वो बात बच्चे कहानी के जरिए सीख लेते हैं  । बच्चों को कहानी के माध्यम से कुछ सिखाना सबसे बेस्ट तारिक हैं क्यों कि हम हमेशा बच्चों को मर कर, डांट कर नहीं सीखा सकत हैं मारने से बच्चों पर गलत असर होता है इससे बच्चों को एक समय के बाद मर खाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसलिए आप को कहानी के माध्यम से बच्चों को सिखाना चाहिए कि क्या ग़लत हैं और क्या सही ? 
तो आज हम आपके लिए ले कर आए हैं एक जादुई कहानी जिस कहनी का नाम है नागिन का करिश्मा । इस कहनी से आपको बहुत  कुछ  सीखने को मिलेगी । चलिए हम आज की कहनी स्टार्ट करते हैं :- 

          ** नागिन का करिश्मा  **
 
बहुत समय पहले की बात हैं। चौक बाज़ार में हुसैन मुस्तफा नाम का एक  बादशाह राज करता था । बादशाह के सरफराज, नवाज़ और कामरान नाम के तीन बेटे थे । जब वे जवान हुए तो एक दिन बादशाह ने उन्हें अपने पास बुलाया ।
 " मेरे होनहार बेटों , मैं बूढ़ा हो चुका हूं और चाहता हूं कि मेरी सल्तनत को तुम लोग संभालो ।"
" अब्बा हुजूर !  इसमें सोचने की क्या बात हैं ? सरफराज और नवाज़ भाई  बड़े हैं , आप यह सल्तनत उन्हें सौंप दीजिए । "
" नहीं अब्बा हुजूर ! सरफराज भाई मुझसे बड़े हैं , इसलिए यह जिम्मेदारी आप उन्हें दे दीजिए ।" 
" तुम ठीक कहते हो ?"
लेकिन अब्बा हुजूर ! इतनी जल्दी क्या है ? अभी तो हमारे खेलने - खाने के दिन हैं । "
" नहीं बेटे ! अब तुम लोग बड़े हो गए हों , इसलिए मैं तुम्हारी शादी कर देना चाहता हूं ताकि तुम लोग अपनी जिममेदारियों को उठाना सीख सको । लेकिन यह सल्तनत मै उसी को सौंपूगा जो सबसे लायक होगा । इसके लिए मै तुम लोगो का इम्तहान  लूंगा ।"
" आपका ख्याल बहुत अच्छा है अब्बा हुजूर।"
और तुम क्या कहते हो कामरान "।
अब्बा हुजूर ! इस तरह तो हम तीनों भाइयों के बीच एक- दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लग जाएगी ।"
" शाबाश बेटा ! तुमने ठीक ही कहा ,  परन्तु आपस की होड़ नीचा दिखाने के लिए नहीं , बल्कि ऊंचा दिखाने के लिए लगाई जाती हैं ।" दूसरे दिन बादशाह ने अपने तीनों बेटों को महल की छत पर एकत्रित किया ।
देखो बेटा ! तुम तीनों अपनी - अपनी सोची हुई दिशाओं में यहां से एक एक तीर छोड़ो ।  जहां तुम्हारे तीर गिरेगे वहीं तुम्हारी शादियां होगी ।
" जो आज्ञा अब्बा हुजूर!" 
सबसे पहले सरफराज ने तीर कमान पर चढ़ाया और छोड़ दिया। उसके बाद नवाज़ ने पश्चिम दिशा में और कामरान ने दक्षिण दिशा में तीर छोड़ दिया ।
बादशाह ने कहा -" अब तुम लोग अपनी - अपनी तीरो को ढूंढ कर लाओ और मुझे बताओ ।"
तीनों शहजादे अपने - अपने तीरों की खोज में निकल पड़े ।
सबसे बड़े शहजादे का तीर एक अमीर जागीरदार के आगन में जा कर गिरा था ।  वह कहने लगा -" वाह ! मेरा नसीब अच्छा हैं ।"
मंझले शहजादे का तीर एक सौदागर के अहाते में गिरा था , वह बोला -" अरे ! सौदागर की बेटी मेरे किस्मत में हैं ।
चलते चलते शाम हो गई । कामरान थक कर चूर हो गया तभी उससे एक नागिन के पास अपना तीर दिखा । वह चौकते हुए कहने लगा -" या ख़ुदा ! मेरा तीर इस नागिन के पास ।"
घोड़े से उतर कर वह नागिन के पास पहुंच कर बोला -" हे नागिन रानी ! मेरा तीर मुझे लौटा दो।"
नागिन बोली -" शहजादे ! तुम्हारा इस तीर से मुझे शादी का पैगाम आया हैं । अब तुम्हे मुझसे शादी करनी होगी।
यह लो अपना तीर ।
शहजादे ने कहा -" नहीं , ऐसा कैसे हो सकता है ? मै एक नागिन से शादी नहीं करूगी । "
नागिन ने कहा -" शादी तो तुम्हें मुझसे करनी पड़ेगी, क्यों कि तुम्हारे भाग्य में यही लिखा हैं "।
दुःखी कामरान नागिन को साथ ले कर महल की ओर लौट चला। दूसरे ही दिन बादशाह हुसैन मुस्तफा ने उन तीनों की शादी एक ही मण्डप में कर दिया ।
कुछ दिन बीतने पर बादशाह ने शहजादों से कहा -" बेटों ! मै देखना c चाहता हूं कि तुम तीनों की बीवियां में से कौन सबसे अच्छा सीना- पिरोना जानती हैं । जाओ, उनसे कहो कि कल सुबह तक मुझे एक - एक कमीज़ सिल दे।"
बादशाह के दोनों बेटे तो खुशी- खुशी चले गया, परन्तु जब कामरान दुःखी मन से अपनी नागिन के पास पहुंचा , तो वह पूछने लगी -" क्या बात है, मेरे सरताज ! आप इतने गमगीन क्यों हैं ।"
" कुछ नहीं तुम जाओ ।" कामरान ने जवाब दिया ।
लेकिन नागिन ने जब बहुत जिद की तो कामरान झुंझला कर बोला-" अब मै तुम्हे क्या बताऊं ? अब्बा हुजूर ने ख्वाहिश की है कि कल सुबह तुम उनके लिए कमीज़ सीकर दो।"
"तो उसमे परेशान होने की क्या बात हैं ? आप सो जाओ , सुबह होने में अभी काफ़ी देर हैं ," नागिन बोली।
शहजादा कामरान बे-मन से सोने चला गया तो नागिन अपने महल में पहुंची और दूसरे ही पल चमत्कार हुआ।
 " हुक्म शहजादी साहिबा।"
" सुनो कल सुबह तक मुझे ऐसी कमीज़ चाहिए, जैसी मेरे अब्बा हुजूर पहना करते हैं।"
" जो हुक्म शहजादी साहिबा ।"
नागिन वापस लौट गई । सुबह जब शहजादा कामरान सो कर  उठा तो नागिन उससे कहने लगी -" कमीज़ तैयार हैं  सरताज ।"
एक शानदार कमीज़ को देख कर चौंक पड़ा।
कामरान रेशमी वस्त्र में लिपटी कमीज़ को ले कर बादशाह के दरबार में पहुंचा।
जब सरफराज ने अपनी बीवी द्वारा बनाई कमीज़ बादशाह को दी तो उसे देख कर बादशाह बोलो, नहीं..... नहीं यह कमीज़ मेरे किसी नौकर के लिए ठीक रहेगी ।"
सरफराज सोचने लगा-" ख़ुदा बचाए इस बूढ़े से।
बादशाह ने उसने कहा -"जाओ ।"
डरते डरते नवाज़ ने अपनी बीवी  द्वारा लाई कमीज़ पेश की ,"आप इससे जरूर पसंद करोगे अब्बा हुजूर"।
बादशाह ने कहा -" लाओ देखते है ।" कमीज़ देख कर बादशाह बोले -"धत तेरी की ! यह तो सिर्फ गुसलखाने में पहनने लायक हैं।"
फिर जब कामरान ने कमीज़ पेश की तो बादशाह का चेहरा खिल उठा और वह कहने लगे -" वाह ! यह कमीज़ वाकई शानदार है । मै इसे विशेष अवसर पर पहनूंगा।"
क्या ? क्या हम लोग बेकार में कामरान की बीवी पर हसंते थे । वह तो जादूगरनी मालूम होती हैं ," सरफराज बोलो।
" तुम ठीक कहते हो भाई जान ,"नवाज़ ने कहा। 
तब बादशाह ने अपने तीनों बेटों से कहा -"बेटों अपनी बीवियों से कहो कि वो मेरे लिए बढ़िया भोजन तैयार करें , मै देखना चाहता हूं कि कौन सबसे अच्छा भोजन बनती हैं ।"
तीनो शहजादे अपने महल में लौट आए । जब कामरान अपने महल में लौटा तो बहुत उदास था ।
उससे उदास देख कर शहजादी ने पूछा " आप इतने उदास क्यों हो  मेरे सरताज ? क्या मेरी बनाई कमीज़ अब्बा हुजूर को पसंद नही आयी ? नहीं , यह बात न हैं "।
"तो क्या बात हैं ? अपनी उदासी का कारण मुझे बताएं मेरे सरताज । " कामरान बोला -" अब्बा हुजूर चाहते हैं कि कल तुम उनके लिए खाना बनाओ ।"
" इसमें परेशान होने की क्या बात हैं कल सुबह उन्हें यहां बुलाकर ले आइएगा ।" लेकिन .......।
"लेकिन वेकिन छोड़िए जो मै कहे रही वहीं कीजिए ।"
उधर सवेरा होते ही नवाज़ और सरफराज की बीवियों ने एक कुटनी दासी को आपने पास बुला कार कहा -" नसीहत बानो ! ज़रा देख कार बता वहां नगीन किस तरह का खाना बना रही हैं ? "
"जो हुकुम मालकिन"। इतना कहा कार नसीहत बानो वहां से चल दी।
नसीहत बानो को अपनी तरफ आता देख नगीन समझ गई कि इस बुढ़िया को यहां देखने के लिए भेजा है कि मै खाना कैसा बनती हूं ।
तत्काल नगीन ने आटे की लोई उठी और जलते तंदूर  डाल दी । नसीहत बानो यहां देख रही थी और जैसा देखा आ कर सब बता दिया ।
 "अच्छा तो ये बात है तो हम भी ऐसा करेगें "यहां कहते हुआ उन दोनों ने आटे की लोइयां तंदूर में डालना शुरू कर दिया।
" हां इसी तरह", दासी ने कहा।
इस बार हमारा खाना खा कर अब्बा हुज़ूर ख़ुश होगे ।
उधर कामरान के सो जाने के बाद नगीन अपने महल पहुंच कर बोली -" मेरे आंका जल्दी से ऐसा खाना तैयार करो जैसा मै अपनी महल में खाया करती थी।"
 "जो हुकुम राजकुमारी जी ।"
अगली सुबह नगीन ने कहा -"मेरे सरताज , खाना तैयार हैं आप जल्दी से अब्बा हुजूर को बुला लाइए ।
"वाह तुम तो बड़े काम की चीज़ हो-"कामरान ने कहा।
उधर दोनों भाई खाना ले कर बादशाह के पास पहुंच चुके थे ।
"अब्बा हुजूर ! खाना तैयार  हैं ।"
 "शाबाश लाओ "
पर जैसे ही बादशाह ने थालियों पर से कपड़ा हटाया तो गुस्से में चीखते हुए बोले -" अरे ! ये जली हुई रोटियां लाये हो तुम दोनों मेरे लिए ? ले जाओ इन्हें ।"
थोड़ी देर बाद कामरान बादशाह के पास पहुंचा ।
" आओ , क्या तुम भी जली - भुनी रोटियां लेकर आए हो ?" 
" गुस्सा थूक दीजिए अब्बा हुजूर और मेरे साथ खाना खाने चलिए ।"
बादशाह कामरान के साथ चल पड़े । इस पर कामरान के दोनों भाईयों ने कहा -" तो चल , हम भी तेरे साथ चलते हैं । देखते हैं वह नागिन क्या खिलाती हैं ?"
" हां चलो ! " कामरान ने कहा ।
जल्दी ही सभी कामरान के महल में पहुंच गए ।
" वाह ! क्या लजीज खाना है । दिल खुश हो गया।"
" वाकई अब्बा हुजूर ! कामरान की नागिन बेगम तो कमाल का खाना पकाती ।"
इस बार भी वह बाजी मार गई ।
खाना खाने के बाद बादशाह ने कहा -" "कल मैंने एक दावत का इंतजाम किया  । बहुत से लोग आ रहे हैं । तुम तीनों भी अपनी - अपनी बेगमों को लेकर आना।"
" इतने लोगो के बीच में अपनी नागिन को लेकर कैसे जाऊंगा ? " कामरान सोचने लगा ।
" क्या बात है मेरे सरताज ? क्या अब्बा हुजूर को खाना पसंद  नही आया । जो मुंह लटकाए खड़े हों।"
" न ये बात न बेगम । मैं सोच रहा हूं कल अब्बा हुजूर की दावत  तुम्हें लेकर कैसे जाऊंगा ? लोग तुम्हें देख कर घबरा जायेंगे और मेरे मजाक उड़ाएगे ।"
" ओह ! ये बात हैं लेकिन कल तो आने दीजिए अभी से परेशान क्यों होते हैं ?"
" तुम हर बार कल पर क्यों टाल देती हो ? मेरी समझ में न आ रहा कल तुम कैसे मेहमानों के सामने मेरे मजाक उड़ाने से बचा पाओगी ।"
 " फ़िक्र मत कीजिए , कल आप अकेले ही दावत में जाना , जब कोई मेरे बारे में पूछे तो कहना आती ही होगी । उस वक़्त कोई अजीब बात हो तो घबराना मत ।"
 
दूसरे दिन -
"वाह ! क्या शानदार इंतजाम हैं । सुना है आज बादशाह अपनी तीनों शहजादों की बेगम से हमारी मुलाकात कराएंगे ।"
" पर एक बेगम तो नागिन हैं संभाल कर 
रहना ।"
उधर दोनों बड़े बेटो की बेगम  जल्दी - जल्दी अपने  चेहरा सजाने में लगी थी ।
" जल्दी कर मंझली , कही दावत शुरू ना हों जाएं ।"
" बस तैयार हो गई आपा ।"
आज बादशाह ने भी बेहतरीन लिबास पहन रखा था । 
" अरे ! कामरान बेटा, तुम्हारी बेगम कहा हैं ?"
" जी अभी आती ही होगी ।"
" अब्बा हुज़ूर ! बेचारे कामरान की बेगम तो खुद नागिन हैं । जरूर तुमने सैकड़ों सांपो के बिल खोद डाले होगे उसे ढूंढने ‌ में ।"
दोनों शहजादों की टिप्पणी पर सारे मेहमान खिलखिला कर हंसने लगे । -" उफ़ बेचारा कामरान ! 
हा .... हा....हा.....।"
तभी अचानक पूरा महल गड़गड़ाहट के साथ हिल उठा।
" अरे ठहरो ! यह क्या हो रहा हैं ?"
" अब्बा हुजूर ! आप घबराइए नहीं। शायद हमारी बेगम तशरीफ़ ला रही हैं ।"
उसी वक़्त महल के बाहर घोड़ा गाड़ी आकर रुकी ।
" अरे शहजादी साहिबा ! सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"
" हां चलो और मेरे शौहर को खबर कर दो कि हम आ गए हैं ।"
"जी।"
दासी दौड़ती हुई भीतर पहुंची और कहने लगी - " मालिक ! आपकी बेगम , तशरीफ़ ले आई है ।"
बेटा कामरान ! जाओ , बहू  की लिवा लाओ ।"
कामरान बाहर आया तो उसने वहां एक ख़ूबसूरत  शहजादी को देखा । उसे देख कर  वह बोला -" आप ! मैंने पहचाना न आपको ।"
" मेरे सरताज ! हम आपकी नागिन शहजादी हैं । यही हमारा असली रूप हैं ।"
कामरान नागिन शहजादी को लेकर अंदर पहुंचा तो सभी हैरानी से उन दो को देखते रहे गए ।
" छोटे शहाजदे की बेगम तो बहुत ख़ूबसूरत है , तुम तो कहते थे कि वह नागिन हैं ।" 
" सुन तो यही था।"
तभी नागिन ने कामरान से कहा  -" मेरे सरताज चौकिए मत! चुप-  चाप तमाशा देखिए ।" 
सब लोग नागिन शहजादी को घेर कर खड़े हों गए उससे बात करने के लिए ।
दोनो बड़े बेटो की बेगम भी नागिन शहजादी के पास गई ।
सबसे बड़े बेटे की बेगम ने कहा -" छोटी शहजादी ! तुम तो नागिन थी ना।" उसकी बातों कों बीच में ही रुकते हुआ मझले बेटे की बेगम ने कहा -" तुम्हारे बारे में तो लोगो बहुत तरह की बातें करते थे लेकिन तुम तो बहुत ख़ूबसूरत हो  छोटी शहजादी । छोटी शहजादी बोली -" आपा लोगो का क्या हैं  , लोग तो कोई तरह की बातें करते हैैं ।" 
इस बीच जब सब बातों में व्यस्त थे तभी कामरान अपनी नागिन से नजरें बचा कर वहां से चुप- चाप निकाल जाता हैं और किसी को पता नही न चलता । कामरान  दौड़ता हुआ महल की ओर चला जा रहा था । वह सोच रहा था कि मुझे  जल्द- से - जल्द अपने महल में पहुंच कर  देखना है नागिन शहजादी का रूप कैसे बदल गया ।  जब कामरान महल पहुंच जाता हैं तो वह जल्दी से नागिन के कमरे की तलाशी लेने लगता हैं । कुछ ही देर में उसको वहां नागिन की एक केचुली मिलती हैं और वो सोचने लगता है कि -" नागिन वो इसी केचुली से बनती हैं तो उसके आने से पहले मुझे ये केचुली जला  देना चाहिए , जिससे मेरी बेगम दुबारा नागिन का रूप ना ले सके और हमेशा के लिए एक ख़ूबसूरत शहजादी ही बनी रहे । " यहां सोच कर उसने उस केचुली को आग में डाल दिया । 
और उसी वक़्त  वहां नागिन शहजादी भी आ जाती हैं । नागिन केचुली बचने की कोशिश करती हैं मगर तब तक केचुली जल कर राख हों चुकी थीं।
यहां देख नागिन रोने लगती हैं  और कहती हैं -"  मेरे सरताज ये आपने क्या कर दिया कुछ दिन ओर इंतेज़ार कर लेते , तो मैं सदा के लिए नागिन के वेश से मुक्त हों जाती । "
"अच्छा कैसे ", कामरान ने  पूछा ।
नागिन ने कहा -"  ये सब मै आपको अभी नहीं  बता सकती हूं । अब मुझे यहां से जाना होगा । अगर मुझे दोबारा पाना चाहते हैं तो आपको कोहकाफ की पहाड़ी पर कज्जा कंकाल की गुफा में आना होगा ।"
" कज्जा कंकाल  की गुफा ?"
पल भर बाद नागिन शहजादी कोयल का रूप धारण कर के वहां से उड़ गई ।
" शहजादी ! कामरान यह कहकर रोने लगा।
उसे रोता देख बादशाह ने पूछा -" क्या हुआ बेटा ! तुम रो क्यों रहे हो ? बहू कहां हैं ? "
" वह मुझे छोड़कर चली गई अब्बा हुजूर ।"
बादशाह को पूरी दास्तान सनाने के बाद कामरान अपनी बीवी की खोज में चल दिया ।
" जल्दी लौटना बेटा ।" बादशाह ने कामरान से कहा। 
दर - दर भटकते हुए काफ़ी समय बीत गया। इस बीच कामरान का घोड़ा भी मर गया।
कामरान ने सोचा कि उफ़ ! कहां हैं कज्जा  कंकाल की गुफा ? लेकिन जब तक सांस बाकी है , मै उसे  ढूंढता रहूंगा।
एक दिन रास्ते में उससे एक बूढ़ा फ़कीर मिला ।
" आदाब बाबा! कामरान ने उस फ़कीर के पास पहुंचकर विनम्रता से कहा।
उसे देखकर फ़कीर बोला -" आदाब बेटा !  सदा सुखी रहो । कहो तुम इस बीहड़ में कैसे भटक रहे हो ? " 
" बाबा ! मुझे कोहकाफ़ की पहाड़ी पर  कज्जा कंकाल की गुफा तक जाना है । वहां मेरी बीवी क़ैद हैं ।
" तुम्हारी बीवी ? वह वहां कैसे पहुंच गई ? क्या नाम है उसका ?"
" बाबा  कुछ दिन पहले वह मुझे नागिन के रूप में मिली थी । वह रूप बदलना नही जानती हैं ।" कहते हुए कामरान ने सारी कहानी सुना दी ।
सारी बात सुनने के बाद फ़कीर ने कहा -" ओह ! बड़ा बुरा हुआ । तुम्हे नागिन की केचुली को जलाना न चाहिए था।"
" वह कौन थीं बाबा ? क्या आप उसके बारे में जानते हैं ?"
 " हां  , जानता हूं बेटा ।" वह कोहका़फ के बादशाह सुलेमान शाह की बेटी हैं और उसका नाम गुलनार हैं । एक बार भूल से गूलनार ने एक नाग को मर दिया था । इस पर क्रुद्ध ‌होकर  कज्जा कंकाल ने उसे तीन वर्ष तक नागिन बनने का शाप दिया था।"
" बाबा ! कज्जा कंकाल उसे शाप देने वाला कौन होता है ?"
" बेटा ! चूंकि वह नाग उसी कंकाल का सेवक था , इसलिए उसने उसे शाप दिया था । फ़िर अब तो उसका शाप खत्म होने वाला था  , पर तुमने उसकी केचुली जला कर उसके शाप की अवधि को तीन साल के लिए ओर बढ़ा दिया । "
" मुश्किल हैं ! बहुत मुश्किल हैं । कज्जा कंकाल को मारकर उस शाप से छुटकारा दिलाना बड़ा ही मुश्किल काम हैं ।"
     फ़कीर उठकर जाने लगा तो कामरान ने कहा -" न बाबा ! मुझे इस हाल पर छोड़ कर मत जाइए । मुझे किसी भी तरह मेरी बीवी को छुड़ाने का उपाय बताइए ।"
" उपाय ! क्या तू कज्जा कंकाल का मुकाबला कर पाएगा ?"
" क्यों न कर पाऊंगा बाबा ? आप मुझे रास्ता सुझाइये  जीवित मै उसे जीवित नहीं छोड़ूंगा ।"
" अच्छी बात है । इस गेंद को उत्तर दिशा को लुढ़का दे और इसके पीछे - पीछे चला जा , पर डरना नहीं ।"
" बाबा , मैंने डरना न सीखा है । बस वह  मुझे एक बार मिल जाए तो उसे मै जिंदा नहीं  छोड़ूंगा ।" 
" शाबास ! अब जा , ख़ुदा तेरा भला करें ।"
कामरान ने गेंद लुढ़का दी और उसके पीछे -  पीछे चल दिया चलते - चलते वह एक जंगल के रास्ते से  होकर गुजरा 






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