अलिफ़ लैला भाग दो ( किस्सा व्यापारी और दैत्य का)
अलिफ़ लैला की कहानियां
(भाग-दो )
हैलो दोस्तों यहां अलिफ़ लैला की कहानी का भाग दूसरा हैं अगर आप आगे ओर कहानी को पढ़ना चाहते हैं तो हमारे ब्लॉग से बने रहें ।
हम भाग एक अपने पहले आर्टिकल पर दिखा चुके हैं ।
*किस्सा व्यापारी और दैत्य का*
किस्सा गधे, बैल और उनके मालिक का
एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल बँधे हुए थे। उसने देखा कि वे दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे हैं। वह व्यापारी पशु-पक्षियों की बोली समझता था। वह चुपचाप खड़ा होकर दोनों की बातें सुनने लगा।
बैल ने गधे से कहा, 'तू बड़ा ही भाग्यशाली है, सदैव सुखपूर्वक रहता है। मालिक हमेशा तेरा खयाल रखता है। तेरी रोज मलाई-दलाई होती है, खाने को दोनों समय जौ और पीने के लिए साफ पानी मिलता है। इतने आदर-सत्कार के बाद भी तुझसे केवल यह काम लिया जाता है कि कभी काम पड़ने पर मालिक तेरी पीठ पर बैठ कर कुछ दूर चला जाता है। तुझे दाने-घास की कभी कमी नहीं होती।
'और तू जितना भाग्यवान है मैं उतना ही अभागा हूँ। मैं सवेरा होते ही पीठ पर हल लादकर जाता हूँ। वहाँ दिन भर मुझे हल में जोतकर चलाते हैं। हलवाहा मुझ पर बराबर चाबुक चलाता रहता है। उसके चाबुकों की मार से पीठ और जुए से मेरे कंधे छिल गए हैं। सुबह से शाम तक ऐसा कठिन काम लेने के बाद भी ये लोग मेरे आगे सूखा और सड़ा भूसा डालते हैं जो मुझसे खाया नहीं जाता। रात भर मैं भूखा-प्यासा अपने गोबर और मूत्र में पड़ा रहता हूँ और तेरी सुख-सुविधा पर ईर्ष्या किया करता हूँ।'
गधे ने यह सुनकर कहा, 'ऐ भाई, जो कुछ तू कहता है सब सच है, सचमुच तुझे बड़ा कष्ट है। किंतु जान पड़ता है तू इसी में प्रसन्न है, तू स्वयं ही सुख से रहना नहीं चाहता। तू यदि मेहनत करते-करते मर जाए तो भी ये लोग तेरी दशा पर तरस नहीं खाएँगे। अतएव तू एक काम कर, फिर वे तुझ से इतनी मेहनत नहीं लिया करेंगे और तू सूख से रहेगा।'
बैल ने पूछा कि ऐसा कौन-सा उपाय हो सकता है। गधे ने कहा, 'तू अपने को रोगी दिखा। एक शाम का दाना-भूसा न खा और अपने स्थान पर चुपचाप लेट जा।' बैल को यह सुझाव बड़ा अच्छा लगा। उसने गधे की बात सुनकर कहा, 'मैं ऐसा ही करूँगा। तूने मुझे बड़ा अच्छा उपाय बताया है। भगवान तुझे प्रसन्न रखें।'
दूसरे दिन प्रातःकाल हलवाहा जब पशुशाला में यह सोचकर गया कि रोज की तरह बैल को खेत जोतने के लिए ले जाए तो उसने देखा कि रात की लगाई सानी ज्यों की त्यों रखी है और बैल धरती पर पड़ा हाँफ रहा है, उसकी आँखें बंद हैं और उसका पेट फूला हुआ है। हलवाहे ने समझा कि बैल बीमार हो गया है और यह सोचकर उसे हल में न जोता। उसने व्यापारी को बैल के बीमारी की सूचना दी।
व्यापारी यह सुनकर जान गया कि बैल ने गधे की शिक्षा पर कार्य कर के स्वयं को रोगी दिखाया है अतएव उसने हलवाहे से कहा कि आज गधे को हल में जोत दो। इसलिए हलवाहे ने गधे को हल में जोत कर उससे सारे दिन काम लिया। गधे को खेत जोतने का अभ्यास नहीं था। वह बहुत थक गया और उसके हाथ-पाँव ठंडे होने लगे। शारीरिक श्रम के अतिरिक्त सारे दिन उस पर इतनी मार पड़ी थी कि संध्या को घर लौटते समय उसके पाँव भी ठीक से नहीं पड़ रहे थे।
इधर बैल दिन भर बड़े आराम से रहा। वह नाँद की सारी सानी खा गया और गधे को दुआएँ देता रहा। जब गधा गिरता-पड़ता खेत से आया तो बैल ने कहा कि भाई, तुम्हारे उपदेश के कारण मुझे बड़ा सुख मिला। गधा थकान के कारण उत्तर न दे सका और आकर अपने स्थान पर गिर पड़ा। यह मन ही मन अपने को धिक्कारने लगा कि अभागे, तूने बैल को आराम पहुँचाने के लिए अपनी सुख-सुविधा का विनाश कर दिया।
मंत्री ने इतनी कथा कर कहा, 'बेटी, तू इस समय बड़ी सुख-सुविधा में रहती है। तू क्यों चाहती है कि गधे के समान स्वयं को कष्ट में डाले?' शहरजाद अपने पिता की बात सुनकर बोली, 'इस कहानी से मैं अपनी जिद नहीं छोड़ती। जब तक आप बादशाह से मेरा विवाह नहीं करेंगे मैं इसी तरह आपके पीछे पड़ी रहूँगी।' मंत्री बोला, 'अगर तू जिद पर अड़ी रही तो मैं तुझे वैसा ही दंड दूँगा जो व्यापारी ने अपनी स्त्री को दिया था।' शहरजाद ने पूछा, 'व्यापारी ने क्यों स्त्री को दंड दिया और गधे और बैल का क्या हुआ?'
मंत्री ने कहा, 'दूसरे दिन व्यापारी रात्रि भोजन के पश्चात अपनी पत्नी के साथ पशुशाला में जा बैठा और पशुओं की बातें सुनने लगा। गधे ने बैल से पूछा, 'सुबह हलवाहा तुम्हारे लिए दाना-घास लाएगा तो तुम क्या करोगे?' 'जैसा तुमने कहा है वैसा ही करूँगा,' बैल ने कहा। गधे ने कहा, 'नहीं, ऐसा न करना, वरना जान से जाओगे। शाम को लौटते समय मैंने सुना कि हमारा स्वामी अपने रसोइए से कह रहा था कि कल कसाई और चमार को बुला लाना और बैल, जो बीमार हो गया है, का मांस और खाल बेच डालना। मैंने जो सुना था वह मित्रता के नाते तुझे बता दिया। अब तेरी इसी में भलाई है कि सुबह जब तेरे आगे चारा डाला जाए तो तू उसे जल्दी से उठकर खा ले और स्वस्थ बन जा। फिर हमारा स्वामी तुझे स्वस्थ देखकर तुझे मारने का इरादा छोड़ देगा।' यह बात सुन कर बैल भयभीत होकर बोला, 'भाई, ईश्वर तुझे सदा सुखी रखे। तेरे कारण मेरे प्राण बच गए। अब मैं वही करूँगा जैसा तूने कहा है।
व्यापारी यह बात सुनकर ठहाका लगा कर हँस पड़ा। उसकी स्त्री को इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ। वह पूछने लगी, 'तुम अकारण ही क्यों हँस पड़े?' व्यापारी ने कहा कि यह बात बताने की नहीं है, मैं सिर्फ यह कह सकता हूँ कि मैं बैल और गधे की बातें सुन कर हँसा हूँ। स्त्री ने कहा, 'मुझे भी वह विद्या सिखाओ जिससे पशुओं की बोली समझ लेते हैं।' व्यापारी ने इससे इनकार कर दिया। स्त्री बोली, 'आखिर तुम मुझे यह क्यों नहीं सिखाते?' व्यापारी बोला, 'अगर मैंने तुझे यह विद्या सिखाई तो मैं जीवित नहीं रहूँगा।' स्त्री ने कहा, 'तुम मुझे धोखा दे रहे हो। क्या वह आदमी जिसने तुझे यह सिखाया था, सिखाने के बाद मर गया? तुम कैसे मर जाओगे? तुम झूठ बोलते हो। कुछ भी हो मैं तुम से यह विद्या सीख कर ही रहूँगी। अगर तुम मुझे नहीं सिखाओगे तो मैं प्राण तज दूँगी।'
यह कह कर वह स्त्री घर में आ गई और अपनी कोठरी का दरवाजा बंद कर के रात भर चिल्लाती और गाली-गलौज करती रही। व्यापारी रात को तो सो गया लेकिन दूसरे दिन भी वही हाल देखा तो स्त्री को समझाने लगा कि तू बेकार जिद करती है, यह विद्या तेरे सीखने योग्य नहीं है। स्त्री ने कहा कि जब तक तुम मुझे यह भेद नहीं बताओगे, मैं खाना-पीना छोड़े रहूँगी और इसी प्रकार चिल्लाती रहूँगी। व्यापारी ने कहा कि अगर मैं तेरी मूर्खता की बात मान लूँ तो मैं अपनी जान से हाथ धो बैठूँगा। स्त्री ने कहा, 'मेरी बला से तुम जियो या मरो, लेकिन मैं तुमसे यह सीख कर ही रहूँगी कि पशुओं की बोली कैसे समझी जाती है।'
व्यापारी ने जब देखा कि यह महामूर्ख अपना हठ छोड़ ही नहीं रही है तो उसने अपने और ससुराल के रिश्तेदारों को बुलाया कि वे उस स्त्री को अनुचित हठ छोड़ने के लिए समझाएँ। उन लोगों ने भी उस मूर्ख को हर प्रकार समझाया लेकिन वह अपनी जिद से न हटी। उसे इस बात की बिल्कुल चिंता न थी कि उसका पति मर जाएगा। छोटे बच्चे माँ की यह दशा देखकर हाहाकार करने लगे।
व्यापारी की समझ ही में नहीं आ रहा था कि वह स्त्री को कैसे समझाए कि इस विद्या को सीखने का हठ ठीक नहीं है। वह अजीब दुविधा में था - अगर मैं बताता हूँ तो मेरी जान जाती है और नहीं बताता तो स्त्री रो रो कर मर जाएगी। इसी उधेड़बुन में वह अपने घर के बाहर जा बैठा।
उसने देखा कि उसका कुत्ता उसके मुर्गे को मुर्गियों से भोग करते देख कर गुर्राने लगा। उसने मुर्गे से कहा, 'तुझे लज्जा नहीं आती कि आज के जैसे दुखदायी दिन भी तू यह काम कर रहा है?'
मुर्गे ने कहा, 'आज ऐसी क्या बात हो गई है कि मैं आनंद न करूँ?' कुत्ता बोला, 'आज हमारा स्वामी अति चिंताकुल है। उसकी स्त्री की मति मारी गई है और वह उससे ऐसे भेद को पूछ रही है जिसे बताने से वह तुरंत ही मर जाएगा। नहीं बताएगा तो स्त्री रो-रो कर मर जाएगी। इसी से सारे लोग दुखी हैं और तेरे अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो स्त्री संभोग की भी बात भी सोचे।'
मुर्गा बोला, 'हमारा स्वामी मूर्ख है जो एक स्त्री का पति है और वह भी उसके अधीन नहीं है। मेरी तो पचास मुर्गियाँ हैं और सब मेरे अधीन हैं। अगर हमारा स्वामी एक काम करे तो उसका दुख अभी दूर हो जाएगा।'
कुत्ते ने पूछा कि स्वामी क्या करे कि उसकी मूर्ख स्त्री की समझ वापस आ जाए। मुर्गे ने कहा, 'हमारे स्वामी को चाहिए कि एक मजबूत डंडा लेकर उस कोठरी में जाए जहाँ उसकी स्त्री चीख-चिल्ला रही है। दरवाजा अंदर से बंद कर ले और स्त्री की जम कर पिटाई करे। कुछ देर में स्त्री अपना हठ छोड़ देगी।'
मुर्गे की बात सुनकर व्यापारी ने उठकर एक मोटा डंडा लिया और उस कोठरी में गया जहाँ उसकी पत्नी चीख-चिल्ला रही थी। दरवाजा अंदर से बंद कर के व्यापारी ने स्त्री पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। कुछ देर चीख-पुकार बढ़ाने पर भी जब स्त्री ने देखा कि डंडे पड़ते ही जा रहे हैं तो वह घबरा उठी। वह पति के पैरों पर गिर कर कहने लगी कि अब हाथ रोक ले, अब मैं कभी ऐसी जिद नही करूँगी। इस पर व्यापारी ने हाथ रोक लिया।
यह कहानी सुनाकर मंत्री ने शहरजाद से कहा कि अगर तुमने अपना हठ न छोड़ा तो मैं तुम्हें ऐसा ही दंड दूँगा जैसा व्यापारी ने अपनी स्त्री को दिया था। शहरजाद ने कहा 'आप की बातें अपनी जगह ठीक हैं किंतु मैं किसी भी प्रकार अपना मंतव्य बदलना नहीं चाहती। अपनी इच्छा का औचित्य सिद्ध करने के लिए मुझे भी कई ऐतिहासिक घटनाएँ और कथाएँ मालूम हैं लेकिन उन्हें कहना बेकार है। यदि आप मेरी कामना पूरी न करेंगे तो मैं आप से पूछे बगैर स्वयं ही बादशाह की सेवा में पहुँच जाऊँगी।'
अब मंत्री विवश हो गया। उसे शहरजाद की बात माननी पड़ी। वह बादशाह के पास पहुँचा और अत्यंत शोक-संतप्त स्वर में निवेदन करने लगा, 'मेरी पुत्री आपके साथ विवाह सूत्र में बँधना चाहती है।' बादशाह को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा, 'तुम सब कुछ जानते हो फिर भी तुमने अपनी पुत्री के लिए ऐसा भयानक निर्णय क्यों लिया?' मंत्री ने कहा, 'लड़की ने खुद ही मुझ पर इस बात के लिए जोर दिया है। उसकी खुशी इसी बात में हैं कि वह एक रात के लिए आप की दुल्हन बने और सुबह मृत्यु के मुख में चली जाए।' बादशाह का आश्चर्य इस बात से और बढ़ा। वह बोला, 'तुम इस धोखे में न रहना कि तुम्हारा खयाल कर के मैं अपनी प्रतिज्ञा छोड़ दूँगा। सवेरा होते ही मैं तुम्हारे ही हाथों तुम्हारी बेटी को सौंपूँगा कि उसका वध करवाओ। यह भी याद रखना कि यदि तुमने संतान प्रेम के कारण उसके वध में विलंब किया तो मैं उसके वध के साथ तेरे वध की भी आज्ञा दूँगा।'
मंत्री ने निवेदन किया, 'मैं आपका चरण सेवक हूँ। यह सही है कि वह मेरी बेटी है और उसकी मृत्यु से मुझे बहुत ही दुख होगा। लेकिन मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।' बादशाह ने मंत्री की बात सुनकर कहा, 'यह बात है तो इस कार्य में विलंब क्यों किया जाए। तुम आज ही रात को अपनी बेटी को लाकर उसका विवाह मुझ से कर दो।'
मंत्री बादशाह से विदा लेकर अपने घर आया और शहरजाद को सारी बात बताई। शहरजाद यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और अपने शोकाकुल पिता के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर के कहने लगी, 'आप मेरा विवाह कर के कोई पश्चात्ताप न करें। भगवान चाहेगा तो इस मंगल कार्य से आप जीवन पर्यंत हर्षित रहेंगे।'
फिर शहरजाद ने अपनी छोटी बहन दुनियाजाद को एकांत में ले जाकर उससे कहा, 'मैं तुमसे एक बात में सहायता चाहती हूँ। आशा है तुम इससे इनकार न करोगी। मुझे बादशाह से ब्याहने के लिए ले जाएँगे। तुम इस बात से शोक-विह्वल न होना बल्कि मैं जैसा कहूँ वैसा करना। मैं तुम्हें विवाह की रात पास में सुलाऊँगी और बादशाह से कहूँगी कि तुम्हें मेरे पास आने दे ताकि मैं मरने के पहले तुम्हें धैर्य बँधा सकूँ। मैं कहानी कहने लगूँगी। मुझे विश्वास है कि इस उपाय से मेरी जान बच जाएगी।' दुनियाजाद ने कहा, 'तुम जैसा कहती हो वैसा ही करूँगी।'
शाम को मंत्री शहरजाद को लेकर राजमहल में गया। उसने धर्मानुसार पुत्री का विवाह बादशाह के साथ करवाया और पुत्री को महल में छोड़कर घर आ गया। एकांत में बादशाह ने शहरजाद से कहा, 'अपने मुँह का नकाब हटाओ।' नकाब उठने पर उसके अप्रतिम सौंदर्य से बादशाह स्तंभित-सा रह गया। लेकिन उसकी आँखों मे आँसू देख कर पूछने लगा कि तू रो क्यों रही है। शहरजाद बोली, 'मेरी एक छोटी बहन है जो मुझे बहुत प्यार करती है और मैं भी उसे बहुत प्यार करती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आज वह भी यहाँ रहे ताकि सूर्योदय होने पर हम दोनों बहनें अंतिम बार गले मिल लें। यदि आप अनुमति दें तो वह भी पास के कमरे में सो रहे।' बादशाह ने कहा, 'क्या हर्ज है, उसे बुलवा लो और पास के कमरे में क्यों, इसी कमरे में दूसरी तरफ सुला लो।'
चुनांचे दुनियाजाद को भी महल में बुला लिया गया। शहरयार शहरजाद के साथ ऊँचे शाही पलँग पर सोया और दुनियाजाद पास ही दूसरे छोटे पलँग पर लेट रही। जब एक घड़ी रात रह गई तो दुनियाजाद ने शहरजाद को जगाया और बोली, 'बहन, मैं तो तुम्हारे जीवन की चिंता से रात भर न सो सकी। मेरा चित्त बड़ा व्याकुल है। तुम्हें बहुत नींद न आ रही हो और कोई अच्छी-सी कहानी इस समय तुम्हें याद हो तो सुनाओ ताकि मेरा जी बहले।' शहरजाद ने बादशाह से कहा कि यदि आपकी अनुमति हो तो मैं जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी प्रिय बहन की इच्छा पूरी कर लूँ। बादशाह ने अनुमति दे दी।
शहरजाद ने कहा :
प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक स्थान पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए देश-विदेश की यात्रा किया करता था। एक बार उसे किसी विशेष कार्य के लिए अन्य स्थान पर जाना पड़ा। वह अकेला घोड़े पर बैठ कर चल दिया। गंतव्य स्थान पर खाने-पीने को कुछ नहीं मिलता था, इसलिए उसने एक खुर्जी में कुलचे और खजूर भर लिए। काम पूरा होने पर वह वापस लौटा। चौथे दिन सवेरे अपने मार्ग से कुछ दूर सघन वृक्षों के समीप एक निर्मल तड़ाग देखकर उस की विश्राम करने की इच्छा हुई। वह घोड़े से उतरा और तालाब के किनारे बैठ कर कुलचे और खजूर खाने लगा। जब पेट भर गया तो उसने जगह साफ करने के लिए खजूरों की गुठलियाँ इधर-उधर फेंक दीं और आराम करने लगा।
इतने में उसे एक महा भयंकर दैत्य अपनी ओर बड़ी-सी तलवार खींचे आता दिखाई दिया। पास आकर दैत्य क्रोध से गरज कर बोला, 'इधर आ। तुझे मारूँगा।' व्यापारी उसका भयानक रूप देखकर और गर्जन सुनकर काँपने लगा और बोला, 'स्वामी, मैंने क्या अपराध किया है कि आप मेरी हत्या कर रहे हैं?' दैत्य ने कहा, 'तूने मेरे पुत्र की हत्या की है, मैं तेरी हत्या करूँगा।'
व्यापारी ने कहा, 'मैने तो आपके पुत्र को देखा भी नहीं, मैंने उसे मारा किस तरह?'
दैत्य बोला, 'क्या तू अपना रास्ता छोड़कर इधर नहीं आया? क्या तूने अपनी झोली से निकाल कर खजूर नहीं खाए और उनकी गुठलियाँ इधर-उधर नहीं फेंकीं?' व्यापारी ने कहा, 'आपकी बातें ठीक हैं। मैंने ऐसा ही किया है।' दैत्य ने कहा, 'जब तू गुठलियाँ फेंक रहा था तो इतनी जोर से फेंक रहा था कि एक गुठली मेरे बेटे की आँख में लगी और बेचारे का उसी समय प्राणांत हो गया। अब मैं तुझे मारूँगा।'
व्यापारी बोला, 'स्वामी मैंने आप के पुत्र को जान-बूझकर तो मारा नहीं है। फिर मुझ से जो भूल हो गई है उसके लिए मैं आप के पैरों पर गिर कर क्षमा माँगता हूँ।' दैत्य ने कहा, 'मैं न दया करना जानता हूँ न क्षमा करना। और क्या खुद तुम्हारी शरीयत में नरवध के बदले नरवध की आज्ञा नहीं दी गई है? मैं तुझे मारे बगैर नहीं रहूँगा।'
यह कह कर दैत्य ने व्यापारी की बाँह पकड़कर उसे पृथ्वी पर गिरा दिया और उसे मारने के लिए तलवार उठाई। व्यापारी अपने स्त्री-पुत्रों की याद कर-कर के विलाप करने लगा, साथ ही ईश्वर और पवित्रात्माओं की सौगंध दिला-दिला कर दैत्य से अपने प्राणों की भिक्षा माँगने लगा। दैत्य ने यह सोच कर हाथ रोक लिया कि जब यह थक कर हाथ-पाँव पटकना बंद कर देगा तो इसे मारूँगा। लेकिन व्यापारी ने रोना-पीटना बंद ही नहीं किया। अंत में दैत्य ने उससे कहा, 'तू बेकार ही अपने को और मुझे तंग कर रहा है। तू अगर आँसू की जगह आँखों से खून बहाए तो भी मैं तुझे मार डालूँगा।'
व्यापारी ने कहा, 'कितने दुख की बात है कि आपको किसी भाँति मुझ पर दया नहीं आती। आप एक दीन, निष्पाप मनुष्य को अन्यायपूर्वक मारे डाल रहे हैं और मेरे रोने- गिड़गिड़ाने का आप पर कोई प्रभाव नहीं होता। मुझे तो अब भी विश्वास नहीं होता कि आप मुझे मार डालेंगे।' दैत्य ने कहा, 'नहीं। निश्चय ही मैं तुम्हें मार डालूँगा।'
इतने में सवेरा हो गया।
शहरजाद इतनी कहानी कह कर चुप हो गई। उसने सोचा, बादशाह के नमाज पढ़ने का समय हो गया है और उसके बाद वह दरबार को जाएगा। दुनियाजाद ने कहा, 'बहन, यह कितनी अच्छी कहानी थी।' शहरजाद बोली, 'तुम्हें यह कहानी पसंद है? अभी तो कुछ नहीं, आगे तो और भी आश्चर्यप्रद है। तुम सुनोगी तो और भी खुश होगी। अगर बादशाह सलामत ने आज मुझे जीवित रहने दिया और फिर कहानी कहने की अनुमति दी तो कल रात मैं तुम्हें शेष कथा सुनाऊँगी, वरना भगवान के पास चली जाऊँगी।'
शहरयार को भी यह कहानी बेहद पसंद आई थी। उसने विचार किया कि जब तक कहानी पूरी न हो जाए शहरजाद को नहीं मरवाना चाहिए इसलिए उसने उस दिन उसे प्राणदंड देने का इरादा छोड़ दिया। पलँग से उठकर वह नमाज पढ़ने गया और फिर दरबार में जा बैठा। शोक-कातर मंत्री भी उपस्थित था। वह अपनी बेटी का भाग्य सोच कर सारी रात न सोया था। वह प्रतीक्षा में था कि शाही हुक्म हो तो मैं अपनी बेटी को ले जाकर जल्लाद के सुपुर्द करूँ। किंतु उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि बादशाह ने यह अत्याचारी आदेश नहीं दिया। शहरयार दिन भर राजकाज में व्यस्त रहा और रात को शहरजाद के साथ सो रहा।
एक घड़ी रात रहे दुनियाजाद फिर जागी और उसने बड़ी बहन से कहा कि यदि तुम सोई नहीं तो वह कहानी आगे कहो। शहरयार भी जाग गया और बोला, 'यह ठीक कहती है। मैं भी व्यापारी और दैत्य की कहानी सुनना चाहता हूँ। तुम कहानी को आगे बढ़ाओ।'
शहरजाद ने फिर कहना शुरू किया :
जब व्यापारी ने देखा कि दैत्य मुझे किसी प्रकार जीवित न छोड़ेगा तो उसने कहा, 'स्वामी, यदि आपने मुझे वध्य समझ ही लिया है और किसी भाँति भी मुझे प्राण दान देने को तैयार नहीं हैं तो मुझे इतना अवसर तो दीजिए कि मैं घर जाकर अपने स्त्री-पुत्रों से विदा ले लूँ और अपनी संपत्ति अपने उत्तराधिकारियों में बाँट आऊँ ताकि मेरे पीछे उनमें संपत्ति को लेकर लड़ाई-झगड़ा न हो। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि यह सब करने के बाद मैं इसी स्थान पर पहुँच जाऊँगा। उस समय आप जो ठीक समझें वह मेरे साथ करें।' दैत्य ने कहा, 'यदि मैं तुम्हें घर जाने दूँ और तुम वापस न आओ फिर क्या होगा? ' व्यापारी बोला, 'मैं जो कहता हूँ उससे फिरता नहीं। फिर भी यदि आपको विश्वास न हो तो मैं उस भगवान की, जिसने पृथ्वी-आकाश आदि सब कुछ रचा है, सौगंध खाकर कहता हूँ कि मैं घर से इस स्थान पर अवश्य वापस आऊँगा।' दैत्य ने कहा, 'तुम्हें कितना समय चाहिए?' व्यापारी ने कहा, 'मुझे केवल एक वर्ष की मुहलत चाहिए जिसमें मैं अपनी सारी जाएदाद का प्रबंध कर के आऊँ और मरते समय मुझे कोई चिंता न रहे। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि वर्षोपरांत मैं इसी स्थान पर आकर स्वयं को आप के सुपुर्द कर दूँगा।' दैत्य ने कहा, 'अच्छा, मैं तुम्हें एक वर्ष के लिए जाने दूँगा किंतु तुम यह प्रतिज्ञा ईश्वर को साक्षी देकर करो।' व्यापारी ने ईश्वर की सौगंध खाकर प्रतिज्ञा दुहराई और दैत्य व्यापारी को उसी तालाब पर छोड़ कर अंतर्ध्यान हो गया। व्यापारी अपने घोड़े पर सवार होकर घर को चल दिया।
रास्ते में व्यापारी की अजीब हालत रही। कभी तो वह इस बात से प्रसन्न होता कि वह अभी तक जीवित है और कभी एक वर्ष बाद की निश्चित मृत्यु पर शोकातुर हो उठता था। जब वह घर पहुँचा तो उसकी पत्नी और बंधु-बांधव उसे देखकर प्रसन्न हुए किंतु वह उन लोगों को देख कर रोने लगा। वे लोग उसके विलाप से समझे कि उसे व्यापार में कोई भारी घाटा हुआ है या कोई और प्रिय वस्तु उसके हाथ से निकल गई है जिससे उसका धैर्य जाता रहा है।
जब व्यापारी का चित्त सँभला और उसके आँसू थमे तो उसकी पत्नी ने कहा, 'हम लोग तो तुम्हें देखकर प्रसन्न हुए हैं; तुम क्यों इस तरह रो-धो रहे हो?'व्यापारी ने कहा, 'रोऊँ-धोऊँ नहीं तो और क्या करूँ। मेरी जिंदगी एक ही वर्ष की और है।' फिर उसने सारा हाल बताया और दैत्य के सामने ईश्वर को साक्षी देकर की गई अपनी प्रतिज्ञा का वर्णन किया। यह सारा हाल सुन कर वे सब भी रोने-पीटने लगे। विशेषतः उसकी पत्नी सिर पीटने और बाल नोचने लगी और उसके लड़के-बच्चे ऊँचे स्वर में विलाप करने लगे। वह दिन रोने-पीटने ही में बीता।
दूसरे दिन से व्यापारी ने अपना सांसारिक कार्य आरंभ कर दिया। उस ने सब से पहले अपने ॠणदाताओं का धन वापस किया। उसने अपने मित्रों को बहुमूल्य भेंटें दीं, फकीरों-साधुओं को जी भर कर दान किया, बहुत-से दास-दासियों को मुक्त किया। उसने अपनी पत्नी को यथेष्ट धन दिया, अवयस्क बेटे-बेटियों के लिए अभिभावक नियुक्त किए और संतानों में संपत्ति को बाँट दिया।
इन सारे प्रबंधों में एक वर्ष बीत गया और वह अपनी प्रतिज्ञा निभाने के लिए दुखी मन से चल दिया। अपने कफन-दफन के खर्च के लिए उसने कुछ रुपया अपने साथ रख लिया। उसके चलते समय सारे घर वाले उससे लिपट कर रोने लगे और कहने लगे कि हमें भी अपने साथ ले चलो ताकि हम भी तुम्हारे साथ प्राण दे दें। व्यापारी ने अपने चित्त को स्थिर किया और उन सब को धैर्य दिलाने के लिए कहने लगा, 'मैं भगवान की इच्छा के आगे सिर झुका रहा हूँ। तुम लोग भी धैर्य रखो। यह समझ लो कि एक दिन सभी की मृत्यु होनी है। मृत्यु से कोई भी नहीं बच सकता। इसलिए तुम लोग धैर्यपूर्वक अपना काम करो।'
अपने सगे-संबंधियों से विदा लेकर व्यापारी चल दिया और कुछ समय के बाद उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ उसने दैत्य से मिलने को कहा था। वह घोड़े से उतरा और तालाब के किनारे बैठ कर दुखी मन से अपने हत्यारे दैत्य की राह देखने लगा। इतने में एक वृद्ध पुरुष एक हिरनी लिए हुए आया और व्यापारी से बोला, 'तुम इस निर्जन स्थान में कैसे आ गए? क्या तुम नहीं हानते कि बहुत-से मनुष्य धोखे से इसे अच्छा विश्राम स्थल समझते हैं और यहाँ आकर दैत्यों के हाथों भाँति-भाँति के दुख पाते हैं?' व्यापारी ने कहा, 'आप ठीक कहते हैं। मैं भी इसी धोखे में पड़ कर एक दैत्य का शिकार होने वाला हूँ।' यह कह कर उसने बूढ़े को अपना सारा वृत्तांत बता दिया।
बूढ़े ने आश्चर्य से कहा, 'यह तुमने ऐसी बात बताई जैसी संसार में अब तक किसी ने नहीं सुनी होगी। तुमने ईश्वर की जो सौंगध खाई थी उसे पूरा करने में प्राणों की भी चिंता नहीं की। तुम बड़े सत्यवान हो और तुम्हारी सत्यनिष्ठा की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। अब में यहाँ ठहर कर देखूँगा कि दैत्य तुम्हारे साथ क्या करता है।'
वे आपस में वार्तालाप करने लगे। इतने ही में एक और वृद्ध पुरुष आया जिसके हाथ में रस्सी थी और दो काले कुत्ते उस रस्सी से बँधे हुए थे। वह उन दोनों से उनका हालचाल पूछने लगा। पहले बूढ़े ने व्यापारी का संपूर्ण वृतांत कहा और यह भी कहा कि मैं आगे का हाल-चाल देखने यहाँ बैठा हूँ। दूसरा बूढ़ा भी यह सब सुनकर आश्चर्यचकित हुआ और वहीं बैठकर दोनों से बातें करने लगा।
कुछ समय के उपरांत एक और बूढ़ा एक खच्चर लिए हुए आया और पहले दो बूढ़ों से पूछने लगा कि यह व्यापारी इतना दुखी होकर यहाँ क्यों बैठा है। दोनों ने उस व्यापारी का पूरा हाल कहा। तीसरे वृद्ध पुरुष ने वहाँ ठहरकर इस व्यापार का अंत देखने की इच्छा प्रकट की। अतएव वह भी वहाँ बैठ गया।
अभी तीसरा बूढ़ा अच्छी तरह साँस भी नहीं ले पाया था कि उन चारों व्यक्तियों ने देखा कि सामने के जंगल में एक बड़ा गहन धूम्रपुंज उठ रहा है। वह धुएँ का बादल उनके समीप आकर गायब हो गया। वे लोग आश्चर्य से आँखें मल ही रहे थे कि एक अत्यंत भयानक दैत्य उपस्थित हो गया। उसके हाथ में तलवार थी और उसने व्यापारी से कहा, 'उठकर इधर आ। मैं तुझे मारूँगा, तून मेरे बेटे को मारा है।' यह सुन कर व्यापारी और तीनों बूढ़े काँपने लगे और उच्च स्वर में विलाप करने लगे। उन सब के रोने- चिल्लाने से जंगल गूँज उठा। किंतु दैत्य व्यापारी को पकड़कर एक ओर ले ही गया।
हिरनी वाले बूढ़े ने यह देखा और वह दौड़कर दैत्य के पास पहुँचा और बोला, 'दैत्य महाराज, मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। आप अपने क्रोध पर कुछ देर के लिए संयम रखें। मेरी इच्छा है कि मैं अपनी और इस हिरनी की कहानी आपको सुनाऊँ। किंतु कहानी के लिए एक शर्त है। यदि आप को यह कहानी विचित्र लगे और पसंद आए तो आप इस व्यापारी का एक तिहाई अपराध क्षमा कर दें।' दैत्य ने कुछ देर तक सोचकर कहा, 'अच्छा, मुझे तुम्हारी शर्त स्वीकार है। कहानी कहो।'
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